श्रीमती शर्मा उच्च श्रेणी अधिकारी की पत्नी,अपनी कालोनी में मिठाई बाँट रही थीं ,उन्हें महिला आरक्षण की वजह से नौकरी मिली I सामने की बस्ती में रहने वाला प्रतिभावान किन्तु आर्थिक रूप से कमजोर युवक दुखी था..कारण...?महिला आरक्षण के चलते उक्त युवक से योग्यता में बहुत पीछे रहने वाली श्रीमती शर्मा को नौकरी मिल गई ,और वो असफल साबित हुआ... I
भारत एक लोकतान्त्रिक देश है ,जिसमे बहुमत से सरकार का गठन होता है I बहुमत पाने के लिए विभिन्न दलों द्वारा अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए जाते हैं..जिनमे से लोकप्रिय प्रलोभन है "आरक्षण " I उसमे भी मुख्य रूप से महिला आरक्षण को उछाला जा रहा है ,किन्तु उसके वास्तविक स्वरुप को नज़रअंदाज करके I उद्देश्य सिर्फ वोट बैंक...वास्तविकता से पूरी तरह दरकिनार कर प्रतिभाओं की उपेक्षा ...सामाजिक स्थिति की उपेक्षा I हम अपने सामाजिक स्वरुप में नज़र डालें तो सामान्य भारतीय परिवार आमदनी के लिए पुरुषों पर निर्भर होते हैं,महिलाओं पर निर्भरता सामाजिक मूल्यों के विरुद्ध मणि जाती है I इस स्थिति में एक आम परिवार का पूरा दायित्व पुरुष का होता है और बेरोजगारी की अवस्था में परिवार की आर्थिक -सामाजिक और भावनात्मक स्थिति पूरी तरह से चरमरा जाती है I यह संभव है की केवल कुछ ही परिवार इसे होते हैं जहाँ महिला सदस्य को पारिवारिक भरण -पोषण के लिए नौकरी करनी होती है ,संपन्न परिवारों की महिलाओं के लिए या तो ये " फ्री टाइम " काटने शौख पूरे करने या खुद को हटाथ पुरुष से समकक्ष " आत्मनिर्भर " साबित करने का जरिया...I
वास्तव में महिला आरक्षण का स्वरुप विकृत हो चुका है ,आर्थिक संम्पन्न महिलाओं के पास उसका प्रयोग महज "किटी पार्टी " की तरह है I और इस तथाकथित आत्मनिर्भरता का खामियाजा उन पुरुषो को भुगतना पद रहा है जो इस मल्हिला आरक्षण की सूली के कारण नाकारा -नालायक (अक्षम) साबित हो रहे हैं I महिला आरक्षण ने महिलाओं के व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला है ,और योग्यता के मूल्यांकन में भी संदेह भी I इसने महिला और पुरुष के बीच की खाई को और गहरा कर दिया है...दोनों के अंतर की दीवार को और भी मजबूत बना दिया..और नारी को शक्ति बताने वाली धारणाओं पर प्रश्नचिन्ह भी लगा दिया.. I
क्या नारी वाकई कमजोर है?क्या उसमे वो योग्यता नही,जो पुरुषों के पास है? क्या इश्वर ने नारी को दया का पात्र बना कर ही भेजा है ? क्या गार्गी , लक्ष्मी बाई, दुर्गावती,आनंदी गोपाल,इंदिरा गाँधी,विजयलक्ष्मी पंडित,मदर टेरेसा,कल्पना चावला जैसी महिलाऐं भी आरक्षण की मोहताज़ थी?नही..........क्योंकि इनकी शख्सियत ,योग्यता ने इन्हें सिर्फ महिलों में नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में अग्रणी बना दियाI
आज के युग में पुरुषों के साथ कदम मिलकर चलने का दम भरने वाली महिलाऐं भी आरक्षण की मांग जोर-शोर से करती हैं I एक तरफ हम सामाजिक लैंगिक समानता की बात करते हैं ,तो दूसरी ओर हम महिलाऐं स्वयं को निरीह मानकर आरक्षण की बैसाखी भी चाहते हैंI क्यों भूल जाते हैं की आरक्षण की चाह उन्हीं लोगों को होती है,जो स्वयं को असमर्थ और अक्षम पाते हैं I इस बैसाखी को अधिकार मानते वक़्त हम क्यों भूल जाते हैं की स्त्री -पुरुष सिर्फ शारीरिक संरचना में भिन्न हैं ,दोनों ही मनुष्य हैं ,तो फिर ये असामनता की चाह क्यों...?महिला आरक्षण की दुहाई देकर मानसिकता को पंगु क्यों किया जा रहा है...?
यदि सामाजिक नजरिये से परिवार की रचना को देखा जाए तो एक नौकरी पेशा युवक अपने पूरे परिवार का भरण -पोषण का कर्तव्य निर्वाहन करता हैI और इसी लड़की से विवाह भी करता है जो नौकरी नही करती (सामान्य वांछनीय स्थिति में ),,,,किन्तु यदि कोई लड़की नौकरी पेशा है तो वो कतई एक बेरोजगार युवक से विवाह करना पसंद नही करती I तो फिर समर्थ महिलाओं को आरक्षण का लाभ क्यों ? पुरुषों में बेरोजगारी का बढ़ता प्रतिशत भी कुछ हद तक इसी आरक्षण का प्रभाव है I
वास्तव में आरक्षण समानता को नही बढ़ाता,विकास और सामाजिक उत्थान को भी इस संज्ञा से परिष्कृत नही किया जा सकताI शायद अब ये मानने में कोई परहेज़ नही होगा की आरक्षण सिर्फ जाति,लिंग,वर्ण एवं संख्यात्मक भेदभाव को बढ़ता है I योग्यता और प्रतिभा की उपेक्षा के कारण कार्य-कुशलता का भी ह्रास हुआ है I मेरा मानना है की आरक्षण केवल सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति के आधार पर देना चाहिए ,साथ ही वो महिलाऐं जो अपने परिवार के भरण - पोषण की एक मात्र आधार हैं;आरक्षण की पात्र होनी चाहिए I महिला आरक्षण की अधिकारिणी आर्थिक रूप से कमजोर व नि:सहाय महिलाऐं होनी चाहिए ...ना की वो जिनके लिए नौकरी सिर्फ मनोरंजन है I
आरक्षण के स्वरुप को परिवर्तित करने पर सामाजिक असमानता तो दूर होगी ही; पुरुष बेरोजगारी का प्रतिशत भी कम होगा,साथ ही वास्तविक शोषित वर्ग का सामाजिक उत्थान भी I अगर हमें अपने राष्ट्र को सर्वोत्कृष्ट बनाने की चाह है तो चयन का मापदंड कार्य-प्रणाली,दक्षता,योग्यता को बनाना होगा न की आरक्षण I सामाजिक उत्थान के लिए एवं अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए महिलाओं को अपनी योग्यता के साथ यह साबित करना होगा की वे असक्षम ,दया की पात्र नही है ,उनमे पुरुष के बराबर ऊर्जा,योग्यता,प्रतिभा है;जिन्हें वो अवसर मिलने पर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में बिना आरक्षण के साबित भी कर सकती है................I