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रविवार, 26 नवंबर 2017

टैबू -1

आज एक मित्र से बात करते हुए मुझे अचानक दिमाग मे दो ऐसे विषय मिले जिन पर चर्चा करना बहुत जरूरी है ,पर हम उससे किनारा काट लेते।
सामाजिक तौर पर हम इन्हें "टैबू" मान लेते। जबकि दोनों हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़े विषय हैं।
एक विषय है "इनबॉक्स " और दूसरा है "शरीरिक सम्बन्ध" ...
अरे आश्चर्य नहीं करिये। । मैं इन दोनों के विषय मे बात करने को टैबू नही मानती।
Fb में अक्सर महिलाएं और लड़कियां ,कभी कभी पुरुष (कुछ विशेष क्षद्म महापुरुष) भी इन्बॉक्स में बात करने को एक विशेष तरह का निषेध बना कर रखते। इनबॉक्स में पिंग करने की बात करते ही यूँ उछलते जैसे बिच्छु ने उन्हें डंक मार दिया हो। हां ये सच है कि सबका नज़रिया अलग होता। पर इनबॉक्स को लेकर गलत धारणा बना लेना भी गलत सोच है। अगर आपसे पूछूँ की क्या बुराई है बात करने में तो जवाब होगा लोग आपकी सहजता का सोचे बिना परेशान करते ,तारीफ करते फालतू।
कुछ हद तक मान सकती हूँ ,पर अपनी सहजता और प्राथमिकता तय करना हमारे हाँथ में है। जिससे हम असहज हों उनसे क्षमा मांग कर अपना मत रख दें। तब भी समस्या हो तो मैसेज ब्लॉक करने का बहुत अच्छा विकल्प है।
दअरसल इनबॉक्स हमारे मन के उस कोने जैसा होता जहां हम सभी की उपस्थिति को सहज नही लेते। जैसे आपके घर के आंतरिक कक्षों में सबका प्रवेश नही हो सकता।
मैं अपने मामले में बताऊँ तो हां ,इनबॉक्स में बात करती। पर सबसे मैं भी सहज नही होती। वहाँ मैं उनसे ही सम्वाद करती जो मेरे लिए इतने आत्मीय होते की उनके सामने बिना लाग लपेट के अपने अंदर के सच को बेझिझक बोल सकूं। वो जो मुझे समझाईश दे सकें । मुझे हक से डांट सके। मैं उनकी जिंदगी का एक हिस्सा होऊं जिससे वो भी अपने सुख ,दुख, सपने बोल सकें।
मेरे लिए इनबॉक्स
और कई बार जो लोग बहुत मुखरता से इनबॉक्स को नकारते वो लोग मुझे फेक लगते। या तो वो सम्वेदना हीन होते या अतिव्यवहारिक ,या इनबॉक्स के प्रति उनके मन मे कोई पूर्वाग्रह या डर होता।
टैबू नहीं ,बहुत ही खास कोना है।
दोस्तों इनबॉक्स के प्रति नज़रिये को बदलिए। आपको आपका खास कोना कैसे सजाना ये आप तय कर सकते। कुछ आत्मीय रिश्ते, दोस्त और सुकून के पल तो आपकी भी चाहत ना ????????????

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