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शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

             अंतिम सत्य  
जिंदगी के बाजार में बैठे हैं...
मौत का सामान सजा कर ...
ये पहली बार ही था ...(?)
जब मुफ्त का सामां उठाया न गया .... 
सच को टालना ..मुमकिन न था 
मोल लेना भी ...तो मुश्किल न था 
तब भी हमने भ्रम को गहराया..
सत्य पर डाला असत्य का साया... 
दिवा स्वप्न से यथार्थ को भुलाया ..
अंतिम सत्य ..... हमने झुठलाया.. ..
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
मयखारो.. क्या खौफ नही है? तुम लोगों को दोजख का .. 
क्यूँ नापाक जाम पर लेते हो, तुम हरदम नाम खुदा का ,
वो मुस्कुराए और फरमाए ...
वो मुस्कुराए और फरमाए ...
मत हो बन्दे तू खुद से ..अनजान 
खुद में ही कर ,उस पाकीजगी का एहतराम 
जमीं ,जर्रा... और आसमान 
बोलो जरा .. कहाँ नहीं है उसका मुकाम.
बोलो जरा .. कहाँ नहीं है उसका मुकाम.?????????
               बंदगी  

देखा है ख्वाब मगर ,हमने चर्चा ना किया.,

यादों को आपकी बेपर्दा ना किया ,
,

दिल में बसते हैं जो धड़कन की तरह,
सांसों की तरह खुद से जुदा ना किया ,
रूह में हरदम तेरा ही एहसास किया ,
लफ्जों में तुमको ,फ़ना ना किया,
 

बंदगी से तेरी ,अब तक ना उबर पाए हम ..
सालों से खुदा की शान में ,सदका ना किया .......