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सोमवार, 30 अप्रैल 2012

कुछ इस तरह

                   

ख्वाब रुकेंगे इन् पलकों में ,उस ओस की तरह...
बिखरेंगे भी तो फैलेंगे ,वो नमी की तरह ...//१//

कभी उलझे ,कभी सुलझे , कटेंगे पल इस तरह ..

कभी लगे नीम ,कभी शहद की मिठास की तरह ..//२//



जिंदगी फिर गुलज़ार होगी ,इन मौसमों की तरह ,

पतझड़ आएँगे भी तो सावन की ,सुगबुगाहट की तरह..//३//



कर रहे हैं जिंदगी पर , यकीं हम कुछ इस तरह...
कि रात भी आती है .... नयी भोर की आहट की तरह ...//४//

(मधुलिका )
 

4 टिप्‍पणियां:

Er.Jayant Sharma ने कहा…

कभी उलझे ,कभी सुलझे , कटेंगे पल इस तरह ..

कभी लगे नीम ,कभी शहद की मिठास की तरह .wah wah..

बहुत ही सुन्दर रचना है मधुलिका जी ..........आपको साधुवाद...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

बढिया काव्याभिव्यक्ति…… आभार

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद एवं स्वागत

Dr.Madhoolika Tripathi ने कहा…

बहुत बहुत धन्यवाद