ख्वाब रुकेंगे इन् पलकों में ,उस ओस की तरह...
बिखरेंगे भी तो फैलेंगे ,वो नमी की तरह ...//१//
कभी उलझे ,कभी सुलझे , कटेंगे पल इस तरह ..
कभी लगे नीम ,कभी शहद की मिठास की तरह ..//२//
जिंदगी फिर गुलज़ार होगी ,इन मौसमों की तरह ,
पतझड़ आएँगे भी तो सावन की ,सुगबुगाहट की तरह..//३//
कर रहे हैं जिंदगी पर , यकीं हम कुछ इस तरह...
कि रात भी आती है .... नयी भोर की आहट की तरह ...//४//
(मधुलिका )
4 टिप्पणियां:
कभी उलझे ,कभी सुलझे , कटेंगे पल इस तरह ..
कभी लगे नीम ,कभी शहद की मिठास की तरह .wah wah..
बहुत ही सुन्दर रचना है मधुलिका जी ..........आपको साधुवाद...
बढिया काव्याभिव्यक्ति…… आभार
बहुत बहुत धन्यवाद एवं स्वागत
बहुत बहुत धन्यवाद
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