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गुरुवार, 19 जुलाई 2012

ज़िन्दगी




हर रूप हर रंग में,
ढलती है जिंदगी .. ,


आंसुओं में धुंधली ,
हंसी में खुलकर बिखरती है जिंदगी ,..


कभी साज़, कभी आवाज़ .

सांसों का राग है जिंदगी ,..


कभी खिखिलाहट,कभी उदासी ,

ग़मों का आगाज़ , है जिंदगी,..


जिए जो हर पल, तो एहसास है जिंदगी ,

वर्ना ख़्वाबों सा अरमान है जिंदगी ...

(मधुलिका )

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

मैं मन ना रंग पाऊंगी ...

मुझसे ना खेलो होली सखी री,मैं मन ना रंग पाऊंगी .... 
होली के रंगों से अब बस ,इस तन को ही रंग पाओगी ...
मेरे गोरे तन की आभा ,अब कृष्णमय हो जाएगी...
श्याम रंग में रंगा है ये मन,उसी के संग हो जाऊंगी ...
खुद को खो कर अब मैं जानी,खुद में उसको पाऊंगी ...
दर्पण मेरा श्याम बना है ,मैं प्रतिबिम्ब बन जाऊंगी...
इस होली में श्याम बिना अब ,कोई रंग ना चाहूंगी ...
मुझसे ना खेलो होली सखी री,मैं मन ना रंग पाऊंगी ..
..
 
(मधूलिका )

अस्तित्व ????


जन्म के बाद भी मैं अस्तित्वहीन हूँ.. बचपन में मैं दीवार पर मारी जाती हूँ..थोड़ी बड़ी हुई तो लाख पाबंदियां..जवानी में कदम रखा ..तो किसी और की हुकूमत सहने के लिए विदा किया जाता है..दहेज़ नही मिला तो जिन्दा जलाई जाती हूँ मैं, बिटिया जनी तो फिर कुचली जाती हूँ. प्रकृति की प्रतिकृति हूँ पर अपनी ही तरह की कृति के नवसृजन करने पर दफनाई जाती हूँ .पुरुषों के अहंकार का बदला मेरी अस्मत से चुकाती हूँ मैं ...बुढ़ापा हुआ तो फिर ठुकराई जाती हूँ...घर से बाहर वृद्धाश्रम में पाई जाती हूँ....
जन्म से मृत्यु तक सिर्फ अपने अस्तित्व को सार्थक करने के प्रयास में प्रश्नचिन्ह बन कर रह जाती हूँ. ...क्योंकि मैं औरत हूँ..मानव जन्म पाने के बाद भी मानव बन कर जीने के अधिकार को तरसती -औरत
 
(
मधुलिका )

वो बेवफा भी नही थे

लफ्जों की जुबान वो समझे नही..
अनकहे आंसुओं को क्या समझ पाते,

खुशियों का सौदा करने वाले..
मेरी दीवानगी क्या समझ पाते ,
वफ़ा ना की उसने ,ये जख्म सह जाते ..
उनकी बेतकल्लुफी से ही हम सब्र कर जाते,

बेवफाई जो करते वो ,तो इन्सान बन जाते..
वो बेवफा भी नही थे.....( !)..

वो बेवफा भी नही थे ...(! ) पत्थर के निकले ..
जिनमे कोई एहसास नही आते,
 जिनमे कोई एहसास नही आते, 

(मधुलिका )

जिंदगी मेरी कटी ,अक्सर तनावों में ...


जिंदगी मेरी कटी, अक्सर तनावों में ,

बेमकसद जिंदगी ,चुभन सी सांसों में,

दर्द हर दम सालता ,इन् स्याह रातों में ,

लौ हमारी बुझ गई,बस राख खातों में ,

लग रही है बोलियाँ ,जीने की ख्वाहिस में ,
खुशियाँ अब सब चुक चुकीं ,गम के तकाजों में .

जिंदगी मेरी कटी ,अक्सर तनावों में ...

जिंदगी मेरी कटी ,अक्सर तनावों में ...

(मधुलिका )
 

सृजन

प्रकृति ने जब लिया आकार..
सृजन को मिलता वृहद विस्तार...
संवेदित मन जब हुआ साकार..
ह्रदय से उद्गम,स्नेह अपार..
उभरी एक ममतामयी आभा..
जीवन की एक नयी परिभाषा..

ईश्वर का है दिव्य अवतार...

जीवन में स्पंदित , माँ का प्यार 



(
मधुलिका )

विरह



प्रिये जब तुम मेरे पास नही थे ,जीवन के एहसास नही थे...

स्मृतियों के गहबर वीराने ,एकाकी हम,तुम साथ नही थे ..


बारहमासी जीवन था ये,पर इनमे मधुमास नही थे.. 
नाग दंश सी डसती थी रातें,उज्जवल से विभात नही थे..


तिक्त धरा सा तपता था मन,मेघों के अभिसार नही थे..प्रतिमा सा पाषण था ये तन , तुम मेरे अभिराम नही थे..

प्रिये जब तुम मेरे पास नही थे,जीवन के एहसास नही थे ,,,,

( मधुलिका )

चांदनी



हर रात दबे पांव ,मेरे कमरे से गुजरती है चांदनी...


मेरी आहों की करवटों से ,अब डरती है चांदनी..

रोते हुए रातों में, कभी गुजारी थी हमने सदियाँ..

अब मेरे ही सायों में सिसकती है चांदनी ,,,

(मधूलिका )

बादल


आज तेरे नाम से अपनी सांसें महका तो दूं,

एक ख़्वाब तेरा,अपनी आँख में सज़ा तो दूं..

पर डरती हूँ ,पर डरती हूँ ,

की तू बादल आवारा है...

आज यहाँ ,कल वहां तेरा ठिकाना है..



मैं तरसूंगी हर पल,पलकों में तुझे छुपाने के लिए,

तू आँखों से बरसेगा भी, तो मुझसे दूर जाने के लिए.




मैं दुआ करून तू फिर आए...ह्रदय विस्तार पर घिर जाए ,

मैं धरती बन कर राह तकूंगी,तू आकाश सा विस्तृत छा जाए ,

उस दिन सफल ये जीवन होगा...


जब दूर क्षितिज में मेरा तुझसे ,

अंत - हीन मधुर मिलन होगा ...

(मधुलिका )

सोमवार, 30 अप्रैल 2012

कुछ इस तरह

                   

ख्वाब रुकेंगे इन् पलकों में ,उस ओस की तरह...
बिखरेंगे भी तो फैलेंगे ,वो नमी की तरह ...//१//

कभी उलझे ,कभी सुलझे , कटेंगे पल इस तरह ..

कभी लगे नीम ,कभी शहद की मिठास की तरह ..//२//



जिंदगी फिर गुलज़ार होगी ,इन मौसमों की तरह ,

पतझड़ आएँगे भी तो सावन की ,सुगबुगाहट की तरह..//३//



कर रहे हैं जिंदगी पर , यकीं हम कुछ इस तरह...
कि रात भी आती है .... नयी भोर की आहट की तरह ...//४//

(मधुलिका )
 

मंगलवार, 13 मार्च 2012

महिला आरक्षण : पंगु होती मानसिकता

                              
श्रीमती शर्मा उच्च  श्रेणी अधिकारी  की पत्नी,अपनी कालोनी में मिठाई बाँट रही थीं ,उन्हें महिला आरक्षण की वजह से नौकरी मिली I सामने की बस्ती में रहने वाला  प्रतिभावान किन्तु आर्थिक रूप से कमजोर युवक  दुखी था..कारण...?महिला आरक्षण के चलते  उक्त युवक से योग्यता में बहुत पीछे रहने वाली  श्रीमती शर्मा को नौकरी मिल गई ,और वो  असफल साबित हुआ... I
  भारत एक लोकतान्त्रिक देश है ,जिसमे बहुमत से सरकार  का गठन होता है  I  बहुमत पाने के लिए विभिन्न दलों द्वारा  अनेक प्रकार के प्रलोभन दिए जाते हैं..जिनमे से लोकप्रिय प्रलोभन है
 "आरक्षण " I   उसमे भी मुख्य रूप से महिला आरक्षण को उछाला जा रहा है ,किन्तु उसके वास्तविक स्वरुप को नज़रअंदाज करके I  उद्देश्य सिर्फ वोट बैंक...वास्तविकता से पूरी तरह दरकिनार कर प्रतिभाओं  की उपेक्षा ...सामाजिक स्थिति की उपेक्षा   I  हम अपने सामाजिक स्वरुप में नज़र डालें तो सामान्य  भारतीय परिवार आमदनी के लिए  पुरुषों पर निर्भर होते हैं,महिलाओं पर निर्भरता सामाजिक मूल्यों के विरुद्ध मणि जाती है I  इस स्थिति में एक आम परिवार का पूरा दायित्व पुरुष का   होता है और बेरोजगारी की अवस्था में परिवार की आर्थिक -सामाजिक  और भावनात्मक स्थिति पूरी तरह से चरमरा जाती है I यह संभव है की केवल कुछ ही परिवार इसे होते हैं जहाँ महिला सदस्य को पारिवारिक भरण -पोषण के लिए नौकरी करनी होती है ,संपन्न परिवारों की महिलाओं के लिए या तो ये " फ्री टाइम " काटने शौख पूरे करने या खुद को हटाथ पुरुष से समकक्ष " आत्मनिर्भर " साबित करने का जरिया...I
 वास्तव में महिला आरक्षण का स्वरुप विकृत हो चुका है ,आर्थिक संम्पन्न महिलाओं के पास उसका प्रयोग महज  "किटी पार्टी " की तरह है I  और इस तथाकथित आत्मनिर्भरता का खामियाजा   उन पुरुषो को भुगतना पद रहा है जो इस मल्हिला आरक्षण की सूली  के  कारण नाकारा -नालायक (अक्षम) साबित हो रहे हैं  I  
महिला आरक्षण ने महिलाओं के व्यक्तित्व पर भी नकारात्मक प्रभाव डाला है ,और  योग्यता के मूल्यांकन में भी  संदेह भी  I इसने महिला और पुरुष के बीच की खाई को और गहरा  कर दिया है...दोनों के अंतर की दीवार को और भी मजबूत बना दिया..और नारी को शक्ति बताने वाली धारणाओं पर प्रश्नचिन्ह  भी लगा दिया..   I
 क्या नारी वाकई कमजोर है?क्या उसमे वो योग्यता नही,जो पुरुषों के पास है? क्या इश्वर ने नारी को दया का पात्र बना कर ही भेजा है ?  
क्या  गार्गी , लक्ष्मी बाई, दुर्गावती,आनंदी गोपाल,इंदिरा गाँधी,विजयलक्ष्मी पंडित,मदर टेरेसा,कल्पना चावला जैसी महिलाऐं भी आरक्षण की मोहताज़ थी?नही..........क्योंकि इनकी शख्सियत ,योग्यता ने इन्हें सिर्फ महिलों में नही बल्कि सम्पूर्ण विश्व में अग्रणी बना दियाI 
आज के युग में पुरुषों के साथ कदम मिलकर चलने का दम भरने वाली महिलाऐं भी आरक्षण की मांग जोर-शोर से करती हैं I एक तरफ हम सामाजिक लैंगिक समानता की बात करते हैं ,तो दूसरी ओर हम महिलाऐं स्वयं को निरीह मानकर आरक्षण की बैसाखी भी चाहते हैंI  क्यों भूल जाते हैं की  आरक्षण की चाह उन्हीं लोगों को होती है,जो स्वयं को असमर्थ और अक्षम पाते हैं  I इस बैसाखी को अधिकार मानते वक़्त हम क्यों भूल जाते हैं की स्त्री -पुरुष सिर्फ शारीरिक संरचना में भिन्न हैं ,दोनों ही मनुष्य हैं ,तो फिर ये असामनता की चाह क्यों...?महिला आरक्षण की दुहाई देकर मानसिकता को पंगु क्यों किया जा रहा है...?
यदि सामाजिक नजरिये से परिवार की रचना को देखा जाए तो एक नौकरी पेशा युवक अपने पूरे परिवार का भरण -पोषण का कर्तव्य निर्वाहन करता हैI  और इसी लड़की से विवाह भी करता है जो नौकरी नही करती  (सामान्य   वांछनीय स्थिति में ),,,,किन्तु यदि कोई लड़की नौकरी पेशा है तो वो कतई एक बेरोजगार युवक से विवाह करना पसंद नही करती I तो फिर समर्थ महिलाओं को आरक्षण का लाभ क्यों ? पुरुषों में बेरोजगारी का बढ़ता प्रतिशत भी कुछ हद तक इसी आरक्षण   का  प्रभाव है I
 
  वास्तव में आरक्षण समानता को नही बढ़ाता,विकास और सामाजिक उत्थान को भी इस संज्ञा से परिष्कृत नही किया जा सकताI  शायद अब ये मानने में कोई परहेज़ नही होगा   की आरक्षण सिर्फ जाति,लिंग,वर्ण एवं संख्यात्मक भेदभाव को बढ़ता है I  योग्यता और प्रतिभा की उपेक्षा के कारण कार्य-कुशलता का भी ह्रास हुआ है  I  मेरा मानना है की आरक्षण केवल सामाजिक स्तर व आर्थिक स्थिति के आधार पर देना चाहिए ,साथ ही वो महिलाऐं जो अपने परिवार के भरण - पोषण की एक मात्र आधार हैं;आरक्षण की पात्र होनी चाहिए I महिला आरक्षण की अधिकारिणी आर्थिक रूप से कमजोर व नि:सहाय महिलाऐं होनी चाहिए ...ना की वो जिनके लिए नौकरी सिर्फ मनोरंजन है  I  
आरक्षण के स्वरुप को परिवर्तित करने पर सामाजिक असमानता तो दूर होगी ही; पुरुष बेरोजगारी का प्रतिशत भी कम होगा,साथ ही वास्तविक शोषित वर्ग का सामाजिक उत्थान भी I अगर हमें अपने राष्ट्र को सर्वोत्कृष्ट बनाने की चाह है तो चयन का मापदंड कार्य-प्रणाली,दक्षता,योग्यता को बनाना  होगा  न की आरक्षण I  सामाजिक उत्थान के लिए एवं अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए महिलाओं को अपनी योग्यता के साथ यह साबित करना होगा की वे असक्षम ,दया की पात्र नही है ,उनमे पुरुष के बराबर ऊर्जा,योग्यता,प्रतिभा है;जिन्हें वो  अवसर मिलने पर स्वस्थ  प्रतिस्पर्धा में  बिना आरक्षण के साबित भी कर सकती है................I  

मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012

तेरे हांथों से छूकर कर ,जो और भी खिल गए थे,
उन लाल गुलाबों की खुशबू ..
ख्वाबों को आज भी सहलाती है...
 

आँखों से जब दूर होकर जो यादों में घुल गए थे ,
किताबो में दफ़न वो पंखुरियां ..
सांसों को आज भी महकाती हैं.....

जिस्म से रूह जुदा कर , हम तुमसे मिल गए थे..
तेरी धडकनों कि आहट..
आज भी जिंदगी दे जाती हैं ...

शुक्रवार, 6 जनवरी 2012

             अंतिम सत्य  
जिंदगी के बाजार में बैठे हैं...
मौत का सामान सजा कर ...
ये पहली बार ही था ...(?)
जब मुफ्त का सामां उठाया न गया .... 
सच को टालना ..मुमकिन न था 
मोल लेना भी ...तो मुश्किल न था 
तब भी हमने भ्रम को गहराया..
सत्य पर डाला असत्य का साया... 
दिवा स्वप्न से यथार्थ को भुलाया ..
अंतिम सत्य ..... हमने झुठलाया.. ..
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
पर जिंदगी ने ... क्या कभी मौत को झुठलाया ....?
मयखारो.. क्या खौफ नही है? तुम लोगों को दोजख का .. 
क्यूँ नापाक जाम पर लेते हो, तुम हरदम नाम खुदा का ,
वो मुस्कुराए और फरमाए ...
वो मुस्कुराए और फरमाए ...
मत हो बन्दे तू खुद से ..अनजान 
खुद में ही कर ,उस पाकीजगी का एहतराम 
जमीं ,जर्रा... और आसमान 
बोलो जरा .. कहाँ नहीं है उसका मुकाम.
बोलो जरा .. कहाँ नहीं है उसका मुकाम.?????????
               बंदगी  

देखा है ख्वाब मगर ,हमने चर्चा ना किया.,

यादों को आपकी बेपर्दा ना किया ,
,

दिल में बसते हैं जो धड़कन की तरह,
सांसों की तरह खुद से जुदा ना किया ,
रूह में हरदम तेरा ही एहसास किया ,
लफ्जों में तुमको ,फ़ना ना किया,
 

बंदगी से तेरी ,अब तक ना उबर पाए हम ..
सालों से खुदा की शान में ,सदका ना किया .......